Sanskrit Class 10 Chapter 7 सौहार्दं प्रकृतेः शोभा Summary

Sanskrit Class 10 Chapter 7 सौहार्दं प्रकृतेः शोभा Summary

1. वनस्य दृश्यम् समीपे एवैका नदी वहति। एकः सिंहः सुखेन विश्राम्यते तदैव एकः वानरः आगत्य तस्य पुच्छं धुनोति। क्रुद्धः सिंहः तं प्रहर्तुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा वृक्षमारूढः। तदैव अन्यस्मात् वृक्षात् अपरः वानरः सिंहस्य कर्णमाकृष्य पुनः वृक्षोपरि आरोहति। एवमेव वानरा: वारं वारं सिंह तुदन्ति। क्रुद्धः सिंहः इतस्ततः धावति, गर्जति परं किमपि कर्तुमसमर्थः एव तिष्ठति। वानराः हसन्ति वृक्षोपरि च विविधाः पक्षिणः अपि सिंहस्य एतादृशीं दशां दृष्ट्वा हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति। निद्राभङ्गदुःखेन वनराजः सन्नपि तुच्छजीवैः आत्मनः एतादृश्या दुरवस्थया श्रान्तः सर्वजन्तून् दृष्ट्वा पृच्छति-

हिंदी अनुवाद
(वन का दृश्य। पास में ही एक नदी बह रही है।)
एक शेर सुख से विश्राम कर रहा है तभी एक बन्दर आकर उसकी पूँछ को पकड़कर घुमा देता है। क्रोधित शेर उस पर प्रहार करना चाहता है, परन्तु बन्दर कूदकर पेड़ पर चढ़ जाता है। तभी दूसरे पेड़ पर से दूसरा बन्दर शेर के कान को खींचकर फिर पेड़ पर चढ़ जाता है; ऐसे बन्दर बार-बार शेर को तंग करते हैं। क्रोधित सिंह इधर-उधर दौड़ता है, गरजता है, परन्तु कुछ भी करने में असमर्थ (लाचार) ही रहता है। बन्दर हँसते हैं और वृक्ष के ऊपर अनेक प्रकार के पक्षी भी शेर की ऐसी दशा देखकर खुशी से मिलीजुली चहचहाहट करते हैं।
नींद के टूट जाने के दुःख से जंगल का राजा होते हुए भी छोटे जीवों से अपनी ऐसी दशा से थका (शेर) सब जीवों को देखकर पूछता है-

2. सिंहः – (क्रोधेन गर्जन्) भोः! अहं वनराजः किं भयं न जायते? किमर्थं मामेवं तुदन्ति सर्वे मिलित्वा?
एकः वानरः – यतः त्वं वनराजः भवितुं तु सर्वथाऽयोग्यः। राजा तु रक्षकः भवति परं भवान् तु भक्षकः। अपि च स्वरक्षायामपि समर्थः नासि तर्हि कथमस्मान् रक्षिष्यसि?
अन्यः वानरः – किं न श्रुता त्वया पञ्चतन्त्रोक्तिः

यो न रक्षति वित्रस्तान् पीड्यमानान्परैः सदा।
जन्तून् पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशयः॥

हिंदी अनुवाद
सिंह – (क्रोध से गरजता हुआ) अरे! मैं जंगल का राजा किसी से डरता नहीं। क्यों सभी मिलकर मुझे तंग करते हैं?
एक बन्दर – क्योंकि तुम जंगल के राजा होने के लिए पूरी तरह से अयोग्य हो। राजा तो रक्षक होता है, परन्तु आप तो भक्षक हैं और आप अपनी भी रक्षा करने में भी समर्थ नहीं हैं तो कैसे हमारी रक्षा करोगे?
अन्य (दूसरा) बन्दर – क्या तुमने पञ्चतन्त्र की यह उक्ति (कथन) नहीं सुनी?
जो राजा के रूप में (राजा होते हुए) विशेष रूप से डरे हुओं को तथा दूसरों के द्वारा पीड़ित जन्तुओं की रक्षा नहीं करता है। वह साक्षात् यमराज होता है यहाँ कोई सन्देह नहीं

3. काकः – आम् सत्यं कथितं त्वया-वस्तुतः वनराजः भवितुं तु अहमेव योग्यः।

पिकः – (उपहसन्) कथं त्वं योग्यः वनराजः भवितुं, यत्र तत्र का-का इति कर्कशध्वनिना वातावरणमाकुलीकरोषि। न रूपं न ध्वनिरस्ति। कृष्णवर्णं, मेध्यामध्यभक्षकं त्वां कथं वनराजं मन्यामहे वयम्?
काकः – अरे! अरे! किं जल्पसि? यदि अहं कृष्णवर्णः तर्हि त्वं किं गौराङ्गः? अपि च विस्मयते किं यत् मम सत्यप्रियता तु जनानां कृते उदाहरणस्वरूपा-‘अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्’-इति प्रकारेण। अस्माकं परिश्रमः ऐक्यं च विश्वप्रथितम्। अपि च काकचेष्ट: विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्रः मन्यते।
पिकः – अलम् अलम् अतिविक्थनेन, किं विस्मर्यते यत्-

काकः कृष्णः पिकः कृष्णः कोः भेदः पिककाकयोः।
वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः।।

हिंदी अनुवाद
कौआ – हाँ, तुमने सच कहा वास्तव में वनराज (जंगल का राजा) होने के लिए तो मैं ही योग्य हूँ।
कोयल – (उपहास/मजाक करती हुई) कैसे तुम जंगल के राजा (वनराज) हो सकने के योग्य हो, जहाँ-तहाँ काँव-काँव की कठोर आवाज़ से वातावरण को व्याकुल करते हो। (तुम्हारे पास) न सुन्दरता है और ना ही सुन्दर आवाज़ है। काले रंग वाले, खाने योग्य और न खाने योग्य वस्तुओं को खाने वाले तुमको हम कैसे वनराज मानें?
कौआ – अरे! अरे! क्या बड़बड़ाती हो? यदि मैं काले रंग वाला हूँ तो तुम क्या गोरे रंग की हो? और भूल भी जाती हो कि मेरी सत्यप्रियता (सत्य के प्रति प्रेम) तो लोगों के लिए उदाहरण के रूप में –’यदि झूठ बोलोगे तो कौआ काटेगा’-इस प्रकरण में है। हमारा परिश्रम और एकता तो संसार में फैली भी है और कौए की चेष्टा वाला छात्र ही आदर्श छात्र माना जाता है।
कोयल – अधिक आत्मप्रशंसा करने (डींगें मारने) से बस करो। क्या भूल जाते हो कि-
कौआ काला है, कोयल काली है। कौआ और कोयल में क्या भेद है। वसन्त समय आने पर कौआ-कौआ होता है और कोयल-कोयल होती है।

4. काकः – रे परभुत! अहं यदि तव संततिं न पालयामि तर्हि कुत्र स्युः पिका:? अतः अहम् एव करुणापरः पक्षिसम्राट काकः।
गजः – समीपतः एवागच्छन् अरे! अरे! सर्वं सभ्भाषणं शृण्वन्नेवाहम् अत्रागच्छम्। अहं विशालकायः, बलशाली, पराक्रमी च। सिंहः वा स्यात् अथवा अन्यः कोऽपि। वन्यपशून् तु तुदन्तं जन्तुमहं स्वशुण्डेन पोथयित्वा मारयिष्यामि। किमन्यः कोऽप्यस्ति एतादृशः पराक्रमी। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय।
वानरः – अरे! अरे! एवं वा (शीघ्रमेव गजस्यापि पुच्छं विधूय वृक्षोपरि आरोहति।

हिंदी अनुवाद
कौआ – अरे दसरों पर पलने वाली। यदि मैं तेरी सन्तान को नहीं पालूँ तो कहाँ कोयल हो? इसलिए मैं ही दयालु पक्षियों का राजा कौआ हूँ।
हाथी – पास से ही आते हुए अरे! अरे! सारी बात को सुनता हुआ ही मैं यहाँ आया हूँ। मैं बहुत बड़े शरीर वाला, बलवान और वीर हूँ। शेर हो अथवा दूसरा कोई भी। वन के पशुओं को तंग (परेशान) करते हुए जीव को मैं अपनी सूंड से पटक-पटककर मार डालूँगा। क्या कोई दूसरा ऐसा वीर है। इसलिए मैं ही वनराज (जंगल के
राजा) के पद के लिए योग्य हूँ।
बन्दर – अरे! अरे! अथवा ऐसे (जल्दी से ही हाथी के भी पूँछ को मरोड़कर पेड़ के ऊपर चढ़ जाता है।)

5. (गजः तं वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा अन्यं वृक्षमारोहति। एवं गजं वृक्षात् वृक्षं प्रति धावन्तं दृष्ट्वा सिंहः अपि हसति वदति च।)
सिंहः – भोः गज! मामप्येवमेवातुदन् एते वानराः।
वानरः – एतस्मादेव तु कथयामि यदहमेव योग्यः वनराजपदाय येन विशालकायं पराक्रमिणं, भयंकरं चापि सिंह गजं वा पराजेतुं समर्था अस्माकं जातिः। अतः वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमाः। (एतत्सर्वं श्रुत्वा नदीमध्यस्थितः एकः बकः)
बकः – अरे! अरे! मां विहाय कथमन्यः कोऽपि राजा भवितुमर्हति अहं तु शीतले जले बहुकालपर्यन्तम् अविचल: ध्यानमग्नः स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षायाः उपायान् चिन्तयिष्यामि, योजना निर्मीय च स्वसभायां विविधपदमलंकुर्वाणैः जन्तुभिश्च मिलित्वा रक्षोपायान् क्रियान्वितान् कारयिष्यामि, अतः अहमेव वनराजपदप्राप्तये योग्यः।
मयूरः – (वृक्षोपरितः-साट्टहासपूर्वकम्) विरम विरम आत्मश्लाघायाः किं न जानासि यत्-

यदि न स्यान्तरपतिः सम्यङ्नेता ततः प्रजा।
अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥

हिंदी अनुवाद
(हाथी उस पेड़ को ही अपनी सूंड से हिलाना चाहता है परन्तु बन्दर कूदकर दूसरे वृक्ष पर चढ़ जाता है। इस प्रकार हाथी को एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष की ओर दौड़ते हुए देखकर शेर भी हँसता है और कहता है।)
सिंह – हे हाथी! मुझको भी इन बन्दरों ने ऐसे ही तंग किया था।
बन्दर – इसीलिए तो कहता हूँ कि मैं ही वनराज (जंगल के राजा) के पद हेतु योग्य हूँ, जिससे हमारी जाति बड़े शरीर वाले, वीर और भयानक शेर अथवा हाथी को भी पराजित (हराने) करने में समर्थ है। अत: जंगल के जीवों की रक्षा के लिए हम ही योग्य (समर्थ) हैं।
(यह सब सुनकर नदी के बीच से बगुला)
बगुला – अरे! अरे! मुझको छोड़कर कैसे दूसरा कोई भी राजा हो सकता है। मैं तो ठंडे जल में बहुत समय तक स्थिर, ध्यान में मग्न योगी की तरह ठहरकर (स्थिति होकर) सबकी रक्षा के उपायों को सोचूँगा और योजना बनाकर अपनी सभा में अनेक पदों को सुशोभित करने वाले जीवों से मिलकर रक्षा के उपायों को कार्यान्वित (साकार रूप में) कराऊँगा। इसलिए मैं ही जंगल के राजा के पद की प्राप्ति के लिए योग्य हूँ।
मोर – (वृक्ष के ऊपर से-अट्टहासपूर्वक) अपनी प्रशंसा करने से रुको रुको; नहीं जानते हो कि-
जो नेता अच्छा राजा नहीं होवे तो उससे (उसकी) प्रजा कान तक के जल वाले समुद्र में डूबने वाली नौका की तरह इस संसार में डूब जाती है।

6. को न जानाति तव ध्यानावस्थाम्। “स्थितप्रज्ञ’ इति व्याजेन वराकान् मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि।
धिक् त्वाम्। तव कारणात् तु सर्वं पक्षिकुलमेवावमानितं जातम्।
वानरः – (सगर्वम्) अतएव कथयामि यत् अहमेव योग्यः वनराजपदाय। शीघ्रमेव मम राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्तु सर्वे वन्यजीवाः।
मयूरः – अरे वानर! तूष्णीं भव। कथं त्वं योग्य: वनराजपदाय? पश्यतु पश्यतु मम शिरसि राजमुकुटमिव शिखां स्थापयता विधात्रा एवाहं पक्षिराजः कृतः अतः वने निवसन्तं माम् वनराजरूपेणापि द्रष्टुं सज्जाः भवन्तु अधुना यतः कथं कोऽप्यन्यः विधातुः निर्णयम् अन्यथाकर्तुं क्षमः।
काकः – (सव्यङ्ग्यम्) अरे अहिभुक्। नृत्यातिरिक्तं का तव विशेषता यत् त्वां वनराजपदाय योग्यं मन्यामहे वयम्।
मयूरः – यतः मम नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना। पश्य! पश्य! मम पिच्छानामपूर्वं सौंदर्यम् (पिच्छानुद्घाट्य नृत्यमुद्रायां स्थितः सन्) न कोऽपि त्रैलोक्ये मत्सदृशः सुन्दरः। वन्यजन्तूनामुपरि आक्रमणं कर्तारं तु अहं स्वसौन्दर्येण नृत्येन च आकर्षितं कृत्वा वनात् बहिष्करिष्यामि। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय।

हिंदी अनुवाद
मोर – तुम्हारी ध्यान की अवस्था (स्थिति) वो कौन नहीं जानता है। योगी के बहाने से बेचारी मछलियों को छलपूर्वक पकड़कर निर्दयता से खा जाते हो। तुम्हें धिक्कार है। तुम्हारे कारण से तो सारा पक्षिकुल (पक्षियों का संसार) ही अपमानित हो गया है।
बन्दर – (गर्व के साथ) इसलिए कहता हूँ कि मैं ही वनराज (वन के राजा के) पद के लिए योग्य हूँ। सभी वन के जीव शीघ्र ही मेरे राज्याभिषेक के लिए तैयार हों। मोर – अरे बन्दर! चुप हो जा। तू जंगल के राजा के पद के लिए कैसे योग्य है? देखो-देखो मेरे सिर पर राजमुकुट की तरह चोटी को स्थापित करने वाले परमात्मा ने ही मुझे पक्षीराज बनाया है इसलिए वन में निवास करने वाले (निवास करते हुए) मुझको जंगल के राजा के रूप में भी देखने के लिए (आप सब) तैयार हों। इस समय क्योंकि कैसे कोई भी दूसरा परमात्मा की व्यवस्था (निर्णय) को व्यर्थ करने में समर्थ है।
कौआ – (व्यंग्य के साथ) अरे साँप खाने वाले! नाचने के अलावा तुम्हारी क्या विशेषता है कि तुमको वनराज के पद के लिए हम योग्य मान लें।
मोर – क्योंकि मेरा नृत्य (नाच) तो प्रकृति की पूजा है। देखो! देखो! मेरे पंखों (पूँछ) की अनोखी सुन्दरता (पंखों को खोलकर नाच/नृत्य की मुद्रा स्थिति में खड़ा होता हुआ) कोई भी तीनों लोकों में मेरी तरह सुन्दर नहीं है। जंगल के जीवों पर आक्रमण करने वाले को मैं अपनी सुन्दरता और नृत्य से आकर्षित करके जंगल से बाहर कर दूंगा। इसलिए मैं ही वन के राजा के पद के लिए योग्य हूँ।

7. (एतस्मिन्नेव काले व्याघ्रचित्रको अपि नदीजलं पातुमागतौ एतं विवादं शृणुतः वदतः च)
व्याघ्रचित्रको – अरे किं वनराजपदाय सुपात्रं चीयते?
एतदर्थं तु आवामेव योग्यौ। यस्य कस्यापि चयनं कुर्वन्तु सर्वसम्मत्या।
सिंहः – तूष्णीं भव भोः। युवामपि मत्सदृशौ भक्षको न तु रक्षकौ। एते वन्यजीवाः भक्षकं रक्षकपदयोग्य न मन्यन्ते अतएव विचारविमर्शः प्रचलित।
बकः – सर्वथा सम्यगुक्तम् सिंहमहोदयेन। वस्तुतः एव सिंहेन बहुकालपर्यन्तं शासनं कृतम् परमधुना तु कोऽपि पक्षी एव राजेति निश्चेतव्यम् अत्र तु संशोतिलेशस्यापि अवकाशः एव नास्ति।

हिंदी अनुवाद
(इसी समय बाघ और चीता भी नदी के जल को पीने के लिए आ गए, इस विवाद को सुनते और बोलते हैं)
बाघ और चीता – अरे क्या वन के राजा के पद के लिए अच्छे पात्र (प्रत्याशी) को चुना जा रहा है? इसके लिए तो हम दोनों ही योग्य हैं। जिस किसी का भी सबकी सहमति से कर लें।
सिंह – अरे चुप हो जाओ। तुम दोनों भी मुझ जैसे ही भक्षक हो रक्षक तो नहीं। यहाँ वन के जीव भक्षक को रक्षक के पद के योग्य नहीं मानते हैं इसलिए बात चल रही है।
बगुला – शेर महोदय ने पूरी तरह से ठीक ही कहा है। वास्तव में शेर ने ही बहुत समय तक राज्य किया है परन्तु अब तो कोई पक्षी ही राजा बने ऐसा निश्चय करना चाहिए यहाँ तो संशय (सन्देह) का थोड़ा सा भी स्थान नहीं है।

8. सर्वे पक्षिण: – (उच्चैः) आम् आम्-कश्चित् खगः एव वनराजः भविष्यति इति।

(परं कश्चिदपि खगः आत्मानं विना नान्यं कमपि अस्मै पदाय योग्यं चिन्तयन्ति तर्हि कथं निर्णयः भवेत् तदा तैः सर्वैः गहननिद्रायां निश्चिन्तं स्वपन्तम् उलूकं वीक्ष्य विचारितम् यदेषः आत्मश्लाघाहीनः पदनिर्लिप्तः उलूको एवास्माकं राजा भविष्यति। परस्परमादिशशन्ति च तदानीयन्तां नृपाभिषेकसम्बन्धिनः सम्भाराः इति।)
सर्वे पक्षिणः सज्जायै गन्तुमिच्छन्ति तर्हि अनायास एव-
काकः – (अट्टाहसपूर्णेन-स्वेरण)-सर्वथा अयुक्तमेतत् यन्मयूर-हंस-कोकिल-चक्रवाक-शुक सारसादिषु पक्षिप्रधानेषु विद्यमानेषु दिवान्धस्यास्य करालवक्त्रस्याभिषेकार्थं सर्वे सज्जाः। पूर्ण दिनं यावत् निद्रायमाणः एषः कथमस्मान् रक्षिष्यति।
वस्तुतस्तु-

स्वभावरौद्रमत्युग्रं क्रूरमप्रियवादिनम्।
उलूकं नृपतिं कृत्वा का नु सिद्धिर्थविष्यति॥

हिंदी अनुवाद
सभी पक्षी-(जोर से)-हाँ हाँ-कोई पक्षी ही जंगल का राजा होगा।
(परंतु कोई भी पक्षी अपने अलावा दूसरे किसी को भी इस पद के लिए योग्य नहीं सोचता तो कैसे निर्णय हो। तब उन सभी ने गहरी नींद में निश्चिन्त सोते हुए उल्लू को देखकर सोचा कि यह आत्मप्रशंसा से रहित, पद के लालच से मुक्त उल्लू ही हमारा राजा होगा और आपस में आदेश करते हैं तो राजा के अभिषेक के लिए सामान लाए जाएँ।)
सभी पक्षी तैयारी के लिए जाना चाहते हैं तभी अचानक ही
कौआ – (अट्टहास से युक्त स्वर से) यह पूरी तरह से अनुचित है कि मोर-हंस-कोयल-चकवा-तोता -सारस आदि प्रमुख पक्षियों के विद्यमान होने (रहने) पर दिन के अंधे इस भयानक मुख वाले के अभिषेक (राजा बनाने) के लिए सब तैयार हैं। पूरे दिन तक (भर) सोता हुआ यह कैसे हमारी रक्षा करेगा। वास्तव में तो-
भयानक स्वाभाव वाले, बहुत क्रोधी, निर्दयी और अप्रिय बोलने वाले उल्लू को राजा बनाकर निश्चित रूप से क्या सफलता या लाभ होगा?

9. (ततः प्रविशति प्रकृतिमाता)
(सस्नेहम्) भोः भोः प्राणिनः। यूयम् सर्वे एव मे सन्ततिः। कथं मिथः कलहं कुर्वन्ति। वस्तुतः सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः। सदैव स्मरत-
ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति पृच्क्षति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्-विध प्रीतिलक्षणम्॥
(सर्वे प्राणिनः समवेतस्वरेण)
मातः। कथयति तु भवती सर्वथा सम्यक् परं वयं भवतीं न जानीमः। भवत्याः परिचयः कः?
प्रकृतिमाता-अहं प्रकृति युष्माकं सर्वेषां जननी? यूयं सर्वे एव मे प्रियाः। सर्वेषामेव मत्कृते महत्वं विद्यते यथासमयम् न तावत् कलहेन समयं वृथा यापयन्तु अपितु मिलित्वा एव मोदध्वं जीवनं च रसमयं कुरुध्वम्। तद्यथा कथितम्-
प्रजासुखे सुखं राज्ञः, प्रजानां च हिते हितम्।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः, प्रजानां तु प्रियं हितम्।।

अपि च- अगाधजलसञ्चारी न गर्वं याति रोहितः।
अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुफुरायते॥

अतः भवन्तः सर्वेऽपि शफरीवत् एकैकस्य गुणस्य चर्चा विहाय, मिलित्वा, प्रकृतिसौन्दर्याय बनरक्षायै च प्रयतन्ताम्।
सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति मिलित्वा दृढसंकल्पपूर्वकं च गायन्ति-

प्राणिनां जायते हानिः परस्परविवादतः।
अन्योन्यसहयोगेन लाभस्तेषां प्रजायते॥

हिंदी अनुवाद
(उसके बाद प्रकृतिमाता प्रवेश करती है।)
(प्रेम के साथ) अरे-अरे जीवो! तुम सब ही मेरी सन्ताने हो। क्यों आपस में झगड़ते हो। वास्तव में सभी वन्यजीव (जंगली प्राणीगण) एक-दूसरे पर आश्रित हैं। सदैव याद रखो-
जो देता है, लेता है, गुप्त बातें बताता है अर्थात् सावधान करता है, पूछता है, खाता है और (खाने के लिए) जोड़ता है। यह छह प्रकार के प्रेम के लक्षण (मित्र के लक्षण) हैं।
(सभी प्राणी एक स्वर से)
हे माता! आप तो पूरी तरह से ठीक कहती हैं परन्तु हम तो आपको नहीं जानते हैं। आपका क्या परिचय है?
प्रकृतिमाता – मैं प्रकृति तुम सबकी माँ हूँ। तुम सभी मेरे प्रिय हो। सभी का ही उचित समय पर मेरे लिए महत्व है तो लड़ाई से समय को व्यर्थ न बिताओ बल्कि मिलकर ही प्रसन्न होवो और जीवन को रस से युक्त (खुशी से युक्त) करो तो जैसा कहा गया है-
राजा का प्रजा के सुख में ही सुख और प्रजा के हित में (ही) अपना हित होता है। राजा का अपना हित प्रिय नहीं होता है। प्रजाओं का हित ही तो उसे प्रिय होता है। और भी-
अथाह (अनन्त) जल में घूमने वाली रोहू नामक मछली कभी भी अपनी कुशलता पर गर्व/घमंड नहीं करती है। परन्तु अँगूठे मात्र अर्थात् थोड़े से जल में घूमने वाली छोटी सहरी मछली अधिक फुदकती है।
अतः आप सभी छोटी सहरी मछली की तरह एक-एक गुण की चर्चा को छोड़कर प्रकृति की सुन्दरता और वन की रक्षा के लिए मिलकर प्रयत्न करो।
सभी जीव-जन्तु प्रकृति माता को प्रणाम करते हैं और मिलकर मजबूत संकल्प के साथ गाते हैं-
आपस के विवाद (लड़ाई-झगड़े) से सभी जीवों की हानि नुकसान होती है। परन्तु एक-दूसरे (परस्पर) के सहयोग से उनका लाभ होता है।

शब्दार्थाः-






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