Sanskrit Class 10 Chapter 8 विचित्रः साक्षी Summary


1. कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्। तेन वित्तेन स्वपुत्रम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेश दापयितुं सफलो जातः। तत्तनयः तत्रैव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्। एकदा स पिता तनूजस्य रुग्णतामाकर्ण्य व्याकुलो जातः पुत्र द्रष्टुं च प्रस्थितः। परमर्थकार्येन पीडितः स बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्।

पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत्। ‘निशान्धकारे प्रसृते विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा’, एवं विचार्य स पार्श्वस्थिते ग्रामे रात्रिनिवासं कर्तुं कञ्चिद् गृहस्थमुपागतः। करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।

हिंदी अनुवाद
किसी ग़रीब आदमी ने जब खूब परिश्रम (मेहनत) करके कुछ धन कमाया। उस धन से (वह) अपने पुत्र को एक महाविद्यालय (कॉलेज) में प्रवेश दिलाने में सफल हो गया। उसका पुत्र वहीं छात्रावास में निवास करते हुए पढ़ाई में जुट गया। एक बार वह पिता बेटे की बीमारी को सुनकर व्याकुल हो गया और पुत्र को देखने के लिए चल पड़ा। परन्तु धन की कमी से दुःखी वह बस को छोड़कर पैदल ही चला।
पैदल चलते हुए शाम के समय में भी वह अपने गन्तव्य (जाने के स्थान) से दूर ही था। ‘रात के अंधेरे में फैले हुए (विस्तृत) निर्जन स्थान पर पदयात्रा उत्तम नहीं होती है।’ ऐसा सोचकर वह पास में स्थित गाँव में रात में रहने के लिए किसी गृहस्थी (गृहस्वामी) के घर पर आया। दयालु गृहस्वामी ने उसे आश्रय (सहारा) दे दिया।

2. विचित्रा दैवगतिः। तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः। तत्र निहितामेका मञ्जूषाम् आदाय पलायितः। चौरस्य पादध्वनिना प्रबद्धोऽतिथि: चौरशङ्या तमन्वधावत् अगृह्णाच्च, पर विचित्रमघटत्। चौरः एव उच्चैः क्रोशितुमारभत “चौरोऽयं चौरोऽयम्” इति। तस्य तारस्वरेण प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः स्वगृहाद् निष्क्रम्य तत्रागच्छन् वराकमतिथिमेव च चौरं मत्वाऽभयिन्। यद्यपि ग्रामस्य आरक्षी एव चौर आसीत्। तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिं चौरोऽयम् इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत्।

हिंदी अनुवाद
भाग्य की गति बड़ी अनोखी होती है। उसी रात में उस घर में कोई चोर घर के अन्दर घुस गया। वहाँ रखी एक संदूक को लेकर भागा। चोर के पैरों की आवाज़ से जगा अतिथि चोर के शक से उसके पीछे भागा और पकड़ लिया, परन्तु अनोखी घटना घटी। चोर ने ही जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया-“यह चोर है यह चोर है”। उसकी चिल्लाहट से जागे गाँव के निवासी अपने घर से निकलकर वहाँ आ गए और बेचारे अतिथि को ही चोर मानकर निन्दा करने लगे। जबकि गाँव का सिपाही ही चोर था। उसी क्षण ही रक्षक (सिपाही) ने उस अतिथि को यह चोर है ऐसा मानकर (निश्चित करके) जेल में डाल दिया।

3. अग्रिमे दिने स आरक्षी चौर्याभियोगे तं न्यायालयं नीतवान्। न्यायाधीशो बंकिमचन्द्रः उभाभ्यां पृथक्-पृथक् विवरणं श्रुतवान्। सर्व वृत्तमवगत्य स तं निर्दोषम् अमन्यत आरक्षिणं च दोषभाजनम्। किन्तु प्रमाणाभावात् स निर्णेतुं नाशक्नोत्। ततोऽसौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्। अन्येद्युः तौ न्यायालये स्व-स्व-पक्षं पुनः स्थापितवन्तौ। तदैव कश्चिद् तत्रत्यः कर्मचारी समागत्य न्यवेदयत् यत् इतः क्रोशद्वयान्तराले कश्चिज्जनः केनापि हतः। तस्य मृतशरीरं राजमार्ग निकषा वर्तते। आदिश्यतां किं करणीयमिति। न्यायाधीशः आरक्षिणम् अभियुक्तं च तं शवं न्यायालये आनेतुमादिष्टवान्।

हिंदी अनुवाद
अगले दिन वह सिपाही चोरी के अभियोग में उसको न्यायालय ले गया। न्यायाधीश (जज़) बंकिमचन्द्र ने दोनों से अलग-अलग विवरण सुना। सारा विवरण जानकर उन्होंने उसे निर्दोष (दोष रहित) माना और सिपाही को दोषी। परन्तु प्रमाण के अभाव से वे निर्णय नहीं कर सके। उसके बाद उन दोनों को उन्होंने अगले दिन हाज़िर होने का आदेश दिया। अन्य दिन उन दोनों ने न्यायालय में अपने-अपने पक्ष को पुनः (फिर) रखा। तभी वहाँ किसी कर्मचारी ने आकर निवेदन किया कि यहाँ से दो कोस की दूरी पर कोई व्यक्ति किसी के द्वारा मार डाला गया है। उसकी लाश राजमार्ग (मुख्य सड़क) के पास पड़ी है। आदेश दें कि क्या करना चाहिए। न्यायाधीश ने सिपाही और कैदी को उस लाश को न्यायालय में लाने का आदेश दिया।

4. आदेशं प्राप्य उभौ प्राचलताम्। तत्रोपेत्य काष्ठपटले निहितं पटाच्छादितं देह स्कन्धेन वहन्तौ न्यायाधिकरणं प्रति प्रस्थितौ। आरक्षी सुपुष्टदेहः आसीत्, अभियुक्तश्च अतीव कृशकायः। भारवतः शवस्य स्कन्धेन वहनं तत्कृते दुष्करम् आसीत्। स भारवेदनया क्रन्दति स्म। तस्य क्रन्दनं निशम्य मुदितः आरक्षी तमुवाच-रे दुष्ट! तस्मिन् दिने त्वयाऽहं चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणाद् वारितः। इदानीं निजकृत्यस्य फलं भुक्ष्व। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे” इति प्रोच्य उच्चैः अहसत्। यथाकथञ्चिद् उभौ शवमानीय एकस्मिन् चत्वरे स्थापितवन्तौ।

हिंदी अनुवाद
आज्ञा को पाकर दोनों चल पड़े। वहाँ पहुँचकर के लकड़ी के तख्ते पर रखे कपड़े से ढके शरीर को कंधे पर उठाए हुए न्यायालय की ओर चल पड़े। सिपाही मोटे और शक्तिशाली शरीर वाला था और कैदी बहुत पतले शरीर वाला। भारी शव को कंधे से उठाना उसके लिए बहुत कठिन था। वह बोझ उठाने के कष्ट से रो रहा था। उसका रोना सुनकर प्रसन्न सिपाही उससे बोला-“अरे दुष्ट! उस दिन तूने मुझे चोरी की सन्दूक (पेटी) को लेने से रोका था। अब अपने किए का फल भोग। इस चोरी के इलज़ाम (अभियोग) में तू तीन वर्ष की जेल (का दण्ड) पाएगा।” ऐसा कहकर जोर से हँसने लगा। जैसे-तैसे दोनों ने लाश को लाकर एक चौराहे पर रख दिया।

5. न्यायाधीशेन पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ। आरक्षिणि निजपक्षं प्रस्तुतवति आश्चर्यमघटत् स शव: प्रावारकमपसार्य न्यायाधीरामभिवाद्य निवेदितवान्-मान्यवर! एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तद् वर्णयामि ‘त्वयाऽहं चोरितायाः मञ्जूषायाः ग्रहणाद् वारितः, अत: निजकृत्यस्य पुलं भुक्ष्व। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे’ इति।

न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डमादिश्य तं जन ससस्मानं मुक्तवान्।
अतएवोच्यते-
दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः।
नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव प्रकुर्वते॥

हिंदी अनुवाद
न्यायाधीश ने फिर उन दोनों की घटना के विषय में बोलने के लिए आदेश दिया। सिपाही द्वारा अपने पक्ष को रखने पर आश्चर्यजनक घटना घटी। वह शव (मुर्दा शरीर) कंबल ओढ़े गए कपड़े को हटाकर न्यायाधीश को प्रणाम करके बोला-माननीय (महोदय)। इस सिपाही ने रास्ते में जो कहा था उसको कह रहा हूँ ‘तुम्हारे द्वारा मुझे चोरी की गई मंजूषा (बक्से) को लेने से रोका गया था, इसलिए अपने किए हुए कर्म का फल भोगो। इस चोरी के अभियोग (जुर्म) में तुम तीन वर्ष की जेल का दंड पाओगे।’

न्यायाधीश ने सिपाही को जेल के दंड का आदेश देकर उस व्यक्ति को सम्मान के साथ छोड़ दिया। इसलिए कहा जाता हैबुद्धि की संपत्ति से युक्त लोग नीति और युक्ति का सहारा लेकर कठिन कामों को भी खेल-खेल में ही (आसानी से) करते हैं। कर लेते हैं।

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