Sanskrit Class 10 Chapter 1 शुचिपर्यावरणम् Summary



1. दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जननसनम्। शुचि… ॥1॥

हिंदी अनुवाद
जीवित रहना (जीवन) कठिन हो गया, अब प्रकृति की ही शरण है, शुद्ध पर्यावरण ही (हमारा आश्रय) है। महानगरों के बीच रात-दिन काले लोहे का पहिया (चक्का) चल रहा है। जो मन को सुखाते हुए और शरीर को पीसते हुए सदा टेढ़ा चलता रहता है। इसके द्वारा (इससे) अपने कठोर (भयानक) दाँतों से जनता का नाश न हो, इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही (हमारा आश्रय) है।

2. कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि …॥2॥

हिंदी अनुवाद
(आज देश में) सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल की तरह मैले (काले) धुएँ को छोड़ रही हैं। अनेकानेक रेलगाड़ियाँ चारों ओर शोर करती हुईं दौड़ रही हैं। गाड़ियों की पंक्तियाँ अनंत हैं, जिससे चलना कठिन हो गया है। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही (हमारी शरण) है।

3. वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि…॥3॥

हिंदी अनुवाद
आज वायुमण्डल बहुत प्रदूषित हो गया है और जल (पानी) शुद्ध नहीं रहा। खाने योग्य सारी वस्तुएँ आज अशुद्ध (विषैली) वस्तुओं से मिलावटी हो गई हैं तथा सारी धरती मैली (अशुद्ध) हो चुकी है। इन सभी अशुद्धियों (मैल) को दूर बाहर करके अन्तर्जगत् अर्थात् मन व बुद्धि आदि को बहुत अधिक शुद्ध करना चाहिए। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

4. कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम् ॥
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि…॥4॥

हिंदी अनुवाद
कुछ समय को (के लिए) मुझे इस (प्रदूषित) नगर से बहुत दूर ले चलिए। जहाँ गाँव की सीमा पर जल से भरी हुई नदी और झरने को देखू। निर्जन जंगल में मेरा क्षण भर के लिए भी भ्रमण होवे। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

5. हरिततरुणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि…॥5॥

हिंदी अनुवाद
हरे-भरे वृक्षों की, सुन्दर लताओं की सुन्दर माला, हवा से हिलाई गई फूलों की पंक्ति (गुच्छे) मेरे लिए सुन्दर हो। आम की नई पंक्ति रुचिपूर्वक (मुझे) प्राप्त रहे।

6. अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशम्।
पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि…॥6॥

हिंदी अनुवाद
मित्र (बन्धु/भाई)! पक्षियों के समूह की आवाज़ से गुंजायमान वन में चलो। नगर की आवाज़ (कोलाहल) से परेशान लोगों को धैर्य के सुख का सन्देश दो, नगरों की चकाचौंध भरी दुनिया कहीं हमारे जीवन के रस का हरण न कर ले। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

7. प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा॥
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि…॥7॥

हिंदी अनुवाद
पत्थर के तल (नीचे) पर लताएँ, पेड़ और झाड़ियाँ पिसें नहीं। प्राकृति में पथरीली सभ्यता समाविष्ट (सम्मिलित) न हो। मैं मनुष्य के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जीवित मृत्यु की नहीं। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।


Previous Post Next Post