Sanskrit Class 10 Chapter 10 भूकम्प विभीषिका Summary



1. एकोत्तर द्विसहस्त्रख्रीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये वर्षे) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारतराष्ट्र नृत्य-गीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर- राज्यं पर्याकुल, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं, विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुण- विभीषिका समस्तमपि गुर्जरक्षेत्रं विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्। बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि। उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः। फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वार-जलधाराभिः- महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्। सहस्रमताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः। ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिता सहस्रशोऽन्ये सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव! क्षुत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्वित्राणि दिनानि जीवन धारितवन्तः।

हिन्दी अनुवाद
सन् दो हजार एक के साल (26 जनवरी 2001 ई०) गणतन्त्र-दिवस-पर्व पर जब सारा भारत देश नाचने-गाने और बजाने की खुशी में मग्न था तब अचानक ही गुजरात राज्य चारों ओर से व्याकुल, अस्त-व्यस्त, रोने-चिल्लाने से दु:खी और मुसीबत में फँस गया। भूकम्प की भयानक मुसीबत ने सम्पूर्ण गुजरात क्षेत्र को विशेषकर कच्छ जिले को विनाश के बाद बची हुई वस्तु के रूप में बदल दिया था। भूकम्प का केन्द्र रहा भुज शहर तो मिट्टी के खिलौने की तरह टुकड़े-टुकड़े हो (टूट-फूट) गया। बहुमंजिली इमारतें तो क्षण भर में ही धराशायी (गिर) हो गईं। बिजली के खंभे उखड़ गए। घर की सीढ़ीनुमा रास्ते बिखर गए थे। धरती दो भागों में बँट गई थी। धरती के अन्दर से ऊपर की ओर निकलती हुई जलधाराओं ने तो महाप्रलय का दृश्य उपस्थित कर दिया था। हजारों की संख्या में प्राणी क्षणभर में ही मर गए थे। टूटे हुए भवनों में दु:खी हजारों दूसरे लोग सहायता के लिए करुण विलाप कर रहे थे। भूख से दुर्बल (सूखे) कण्ठ वाले लगभग मरे हुए (मरे हुए से) कुछ बच्चों ने तो ईश्वर की कृपा से दो-तीन दिन ही जीवन धारण किए।

2. इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छ-भूकम्पस्य। पञ्चोत्तर-द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीर-प्रान्ते पाकिस्तान-देशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः। पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते वैज्ञानिकाः इति विषये कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भे विद्यमानाः बृहत्यः पाषाण-शिलाः यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम्, संस्खलनजन्य कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धरायाः उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते।

हिन्दी अनुवाद
यह कच्छ के भूकम्प की भयानक विभीषिका थी। दो हजार पाँच ईस्वीय वर्ष (2005 ई.) में भी कश्मीर राज्य और पाकिस्तान देश में धरती का महा कम्पन्न हुआ था। जिसके कारण से लाखों लोग असमय ही मौत की भेंट चढ़ गए थे। धरती कैसे काँपती है वैज्ञानिक इस विषय में कहते हैं कि पृथ्वी के अन्दर विद्यमान (स्थित) बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाएँ जब घर्षण (कम्पन) के कारण टूटती हैं तब भयंकर स्खलन (क्षरण / पतन) और स्खलन से उत्पन्न (होने वाला) कंपन पैदा होता है। तभी भयंकर कंपन धरती के ऊपरी तल पर आकर महान कँपकँपी पैदा करता है जिससे महाविनाश का दृश्य पैदा होता है।

3. चालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिकाशिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुर्वारगत्या धरा पर्वतं वा विदार्य बहिर्निष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियश-ताप-मात्राया अष्टशताङ्कतामुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि वा तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति। निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः। ज्वालामुगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।

हिन्दी अनुवाद
ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प उत्पन्न होता है ऐसा भूकम्प के विशेषज्ञ कहते हैं। पृथ्वी के अन्दर (गर्भ में) स्थित आग जब खनिजों, मिट्टी और शिला (पत्थर) आदि को तपाती (उबालती) है तब वह सब अंगारों का रूप धारण करके तेज़ गति से धरती अथवा पहाड़ को फोड़कर (फाड़कर) बाहर निकलता है। तब आकाश धुएँ और राख से ढक जाता है। सेल्सियस की गर्मी मात्रा के आठ सौ (800) अंकों (आठ सौ डिग्री सेल्सियस) को प्राप्त यह लावा (अंगारे) जब नदी की गति से (नीचे) बहता है तब पास में स्थित गाँव अथवा शहर क्षण भर में ही उसके पेट में समा जाते हैं और विवश (बेचारे) प्राणी मारे जाते हैं। ज्वालाओं को उगलते हुए ये पहाड़ भी भयानक भूकम्प को पैदा करते हैं।

4. यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश यते। प्रकृतिसमक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं न करणीयम्। तटबन्धं निर्माय बृहन्मानं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पस्सम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एव पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।

हिन्दी अनुवाद
जबकि भूकम्प दैवीय (प्राकृतिक) प्रकोप (मुसीबत) है, अतः उसके निराकरण (शान्ति) का कोई स्थिर (कारगर) उपाय नहीं दिखाई देता है। प्रकृति के सामने आज भी विज्ञान के ज्ञान से घमण्डी मनुष्य बौने की तरह ही है तो भी भूकम्प के रहस्यों को जानने वाले विद्वान कहते हैं कि बहुमंजिले भवन को नहीं बनाना चाहिए। बाँध बनाकर बड़ी मात्रा में नदी के जल को भी एक स्थान पर नहीं रोकना चाहिए। नहीं तो असन्तुलन के कारण भूकम्प सम्भव है। वास्तव में शान्त पाँचों ही तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश धरती के योग-क्षेम (अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्ति की रक्षा) के लिए समर्थ कहलाते हैं। निश्चय से अशान्त वे ही महाविनाश को पैदा करते हैं।

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